कुण्डलियाँ छंद– कुण्डलिया छंद के बारे में जानने के लिए सबसे पहले नीचे दिए गए और उदाहरण को देखें।
बिना बिचारे जो करे, सो पाछे पछिताय।
काम बिगारे आपनो, जग में होत हँसाय॥
जग में होत हँसाय, चित्त में चैन न आवे।
खानपान, सम्मान, राग, रंग, मनहिं न भावै॥
कह गिरिधर कविराय, दुख कुछ टरत न टारें।
खटकत है जिय माहि, कियो जो बिना बिचारे।
कुण्डलिया छन्द में दोहा और रोला छंदों का इस प्रकार मिश्रण रहता है, मानो ये कुण्डली रूप में परस्पर गुथे हुए हैं। इस छन्द में छः चरण हैं। प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ हैं। जैसे–
बिना बिचारे जो करे, सो पाछे पछिताय।
I S - I S S - S- I S - S - S S - I I S I
इस छन्द में जिस शब्द से इस छंद का आरंभ होता है, उसी शब्द से अंत होता है।
जैसे कि – 'बिना बिचारे जो करे' पंक्ति से छंद का आरंभ हुआ है और अंत में भी यही शब्द हैं।
दूसरी पंक्ति का उत्तरार्द्ध (दूसरी पंक्ति के अंतिम शब्द) तीसरी पंक्ति तथा पूर्वार्द्ध (तीसरी पंक्ति के प्रारंभिक शब्द) होते हैं।
जैसे- उपरोक्त उदाहरण में दूसरी पंक्ति के अंतिम शब्द हैं 'जग में होत हसाय' और यही शब्द तीसरी पंक्ति के प्रारंभ में हैं।
इस प्रकार के छन्द को कुण्डलियाँ छंद कहते हैं।उपर्युक्त छन्द में ऊपर की दो पंक्तियों में दोहा छंद तथा शेष चार पंक्तियों में रोला छंद है।
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आशा है, उपरोक्त जानकारी परीक्षार्थियों / विद्यार्थियों के लिए ज्ञानवर्धक एवं परीक्षापयोगी होगी।
धन्यवाद।
R F Temre
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आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
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Thank you.
R. F. Tembhre
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